Tuesday, April 30, 2019

शीत युद्ध के दौर की ड्रिंक, जिसने कोला को टक्कर दी

इससे पहले सोवियत संघ और अमरीका के बीच क़रीब चार दशक चला शीत युद्ध 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ख़त्म हो गया था.

पूरब और पश्चिम के बीच दीवार ढही तो बाज़ार भी खुला. पश्चिमी देशों के मशहूर उत्पाद जैसे कोका कोला, पेप्सी, मैक्डोनाल्ड्स ने रूस और सोवियत संघ के खेमे वाले देशों तक दायरा बढ़ा लिया.

लेकिन, शीत युद्ध के दौरान ऐसा मुमकिन नहीं था. पूर्वी यूरोपीय देशों में कोका कोला जैसे उत्पाद आसानी से नहीं मिलते थे.

इसी दौर में पूर्वी यूरोपीय देश चेकोस्लोवाकिया में कोका कोला जैसे ड्रिंक को ईजाद किया गया.

शीत युद्ध ख़त्म हो गया. चेकोस्लोवाकिया आज चेक और स्लोवाकिया नाम के दो देशों में बंट गया है. लेकिन, कोका कोला की कमी पूरा करने वाला ये ड्रिंक आज भी दोनों देशों के साझा इतिहास का प्रतीक बना हुआ है.

ये चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग और स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में बराबर से लोकप्रिय है. इस सॉफ्ट ड्रिंक का नाम है-कोफ़ोला.

शीत युद्ध के दौर में स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में पेप्सी और कोक केवल सरकारी राशन की दुकान टुज़ेक्स में उपलब्ध होते थे.

ये बहुत महंगे बिकते थे. इन्हें ख़रीदने के लिए सरकार से टोकन लेना पड़ता था. उस दौर में स्थानीय लड़कियां विदेशी सैलानियों से केवल इसलिए इश्क़ फ़रमाती थीं कि वो उन्हें पेप्सी या कोक पिला देंगे.

किल्लत की वजह से कोक और पेप्सी की कालाबाज़ारी भी हुआ करती थी.

इसी दौर में चेकोस्लोवाकिया में कोफ़ोला की ईजाद हुई. बीसवीं सदी में चेकोस्लोवाकिया, सोवियत खेमे का देश हुआ करता था. पश्चिमी देशों के सामान की बिक्री पर बहुत नियंत्रण था.

पेप्सी और कोक की किल्लत देखते हुए चेकोस्लोवाकिया के वैज्ञानिक ज़ेडेनेक ब्लाज़ेक ने कोफ़ोला सॉफ्ट ड्रिंक को ईजाद किया.

इसे कुछ फलों का रस और कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को मिलाकर बनाया गया था. क़िस्सा मशहूर है कि ब्लाज़ेक और उनकी टीम भुनी हुई कॉफ़ी को पीसने से निकलने वाले कचरे के निस्तारण के विकल्प तलाश रहे थे.

इसी दौरान ग़लती से कोफ़ोला को बनाने का नुस्खा भी निकल आया. हालांकि कोफ़ोला में कैफ़ीन होता है, पर ये क़िस्सा सही नहीं है.

आज भी स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा के कमोबेश हर छोटे-बड़े बार में सबसे ज़्यादा परोसा जाने वाला ड्रिंक कोफ़ोला ही है. जो कंपनी इसे बनाती है उसके फ़ेसबुक पेज के 5 लाख से ज़्यादा फॉलोवर्स हैं. ये फ़ेसबुक पर सबसे मशहूर चेक/स्लोवाक ब्रैंड है.

कोफ़ोला चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया में इतना मशहूर है कि इसकी नक़ल कर के कई उत्पाद बाज़ार में उतार दिए गए हैं.

ब्रातिस्लावा की गाइड लिंडा मेतेसोवा कहती हैं कि ब्रातिस्लावा के बहुत से पब के बाहर बोर्ड लगाए गए हैं कि वो असली कोफ़ोला ही परोसते हैं. इसकी नक़ल कर के बनाया गया लोकाल्का नाम का पेय भी काफ़ी पसंद किया जाता है.

चेक और स्लोवाक लोग इसे नक़ली नहीं कहते. क्योंकि यूं तो कोफ़ोला को पेप्सी और कोक के विकल्प के तौर पर अपनाया गया था. लेकिन, इसका ख़ास स्वाद इसे बाक़ी सॉफ्ट ड्रिंक से बिल्कुल अलग करता है.

फिर ये उस दौर का हिस्सा है जब चेक गणराज्य और स्लोवाकिया एक ही देश हुआ करते थे. आज की पीढ़ी इसे अपने साझा इतिहास की विरासत मानती है.

कोफ़ोला की ही तरह पूर्वी यूरोप के दूसरे देशों में भी कोक और पेप्सी के विकल्प के तौर पर कई पेय ईजाद किए गए थे.

मसलन, पूर्वी जर्मनी में वीटा कोला, क्विक कोला, कैफ़ी कोला और ऐसी ही 14 सॉफ्ट ड्रिक्स बेची जाती थी. पोलैंड मे पोलो कॉक्टा बिकता था, तो, सोवियत संघ में बैकाल नाम का सॉफ्ट ड्रिंक बेचा जाता था.

वहीं, युगोस्लाविया में आज भी कॉक्टा के नाम से एक पेय बिकता है. जबकि, युगोस्लाविया एक देश के दौर पर कब का पंचतत्व में विलीन हो चुका है.

पर, पूर्वी यूरोपीय देशों के इन सॉफ्ट ड्रिंक के मुक़ाबले कोफ़ोला की बात ही कुछ और है. दूसरे पेय जहां कोक और पेप्सी से काफ़ी मिलते थे.

वहीं, कोफ़ोला का स्वाद एकदम अलग था. इसीलिए, सोवियत संघ के पतन और शीत युद्ध के ख़ात्मे के बाद नक़ल कर के बनाए गए ये सारे सॉफ्ट ड्रिंक बाज़ार से ग़ायब हो गए.

लिंडा मेतेसोवा बताती हैं कि 1980 के दशक में उनकी मां ने पैसे जुटाकर फैंटा की एक बोतल पी थी.

पर, वो उसके स्वाद से बहुत निराश हुई थीं. उसके मुक़ाबले कोफ़ोला कम मीठा हुआ करता था. इसे पीकर ताज़गी महसूस होती थी.

हालांकि कोफ़ोला, चेकोस्लोवाकिया के मुश्किल दौर की याद दिलाता है. लेकिन, दोनों ही देशों के लोग इसे अपनी विरासत का हिस्सा मानते हैं.

आज भी जिन लोगों को कोक या पेप्सी नहीं पसंद है, वो कोफ़ोला को तरज़ीह देते हैं. अब ये पूर्वी यूरोपीय देशों के दायरे से निकल कर दूसरे देशों में रहने वाले चेक और स्लोवाक लोगों तक पहुंचाया जाता है.

ब्रिटेन के रहने वाले अनीश शाह बताते हैं कि 2004 में लंदन में कोफ़ोला की कुछ ही बोतलें बिकती थीं. आज एक महीने में 3 हज़ार लीटर तक कोफ़ोला बिक जाता है.

माना जाता है कि कोक और पेप्सी के मुक़ाबले कोफ़ोला सेहतमंद होता है. इसमें 30 फ़ीसद कम चीनी होती है. और फॉस्फेरिक एसिड तो होता ही नहीं. अब ये कई स्वाद और वेराइटी में मिलता है. इसमें लेमन और वनीला शामिल हैं.

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